Satya Mev jayte #Vegetable अदरक की खेती (Ginger Cultivation) कब और कैसे करें

अदरक की खेती (Ginger Cultivation) कब और कैसे करें

अदरक की खेती (Ginger Cultivation) कब और कैसे करें

अदरक की खेती (Ginger Cultivation) कब और कैसे करें – विस्तृत जानकारी

परिचय:

अदरक (Ginger) एक प्रमुख मसाला फसल है जिसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों और औषधीय उत्पादों में किया जाता है। इसमें जिंजरोल नामक यौगिक पाया जाता है, जो इसे विशेष स्वाद और सुगंध देता है। अदरक की खेती मुख्य रूप से इसके राइजोम (जड़ का हिस्सा) के लिए की जाती है।

जलवायु और मिट्टी:

  • जलवायु: अदरक की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसका आदर्श तापमान 25°C से 35°C के बीच होता है। ठंडे और शुष्क मौसम में अदरक की पैदावार और गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • मिट्टी: अदरक के लिए दोमट, बलुई दोमट, या लाल मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी में जैविक पदार्थ की अच्छी मात्रा होनी चाहिए और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी का pH 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।

बुवाई का समय:

  • खरीफ मौसम: अदरक की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से जून के बीच होता है। इसे मानसून की शुरुआत से पहले या मानसून के शुरुआती दिनों में बोया जाता है।

बीज और बुवाई:

  • बीज की तैयारी: अदरक की खेती के लिए अच्छे गुणवत्ता वाले राइजोम (जड़ का हिस्सा) का चयन करें। बीज के रूप में उपयोग किए जाने वाले राइजोम के टुकड़ों का वजन 20-25 ग्राम होना चाहिए और उनमें कम से कम 2-3 आँखें (芽) होनी चाहिए।
  • बीज उपचार: बीजों को कवकनाशी के घोल (जैसे कि मैंकोज़ेब या कार्बेन्डाजिम) में 30 मिनट के लिए डुबोकर उपचारित करें। इसके बाद उन्हें छाया में सुखा लें।
  • बुवाई की दूरी: पौधों के बीच 20-25 सेमी और पंक्तियों के बीच 30-35 सेमी की दूरी रखें। बीजों को 5-7 सेमी की गहराई पर बोया जाता है।
  • बुवाई की विधि: अदरक की बुवाई क्यारियों में की जाती है। बुवाई के बाद, हल्की सिंचाई करें और क्यारियों को पुआल या सूखे घास से ढक दें, ताकि नमी बनी रहे।

सिंचाई:

  • पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
  • सिंचाई की आवश्यकता: अदरक की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में हर 7-10 दिनों पर और मानसून के बाद हर 15-20 दिनों पर सिंचाई करें। जलभराव से बचने के लिए जल निकासी का उचित प्रबंध करें।

उर्वरक:

  • जैविक खाद: बुवाई से पहले खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। अदरक की खेती में जैविक खाद का उपयोग गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
  • रासायनिक उर्वरक: 75-100 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फॉस्फोरस, और 50-60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की मात्रा को तीन हिस्सों में विभाजित करें: पहला हिस्सा बुवाई के समय, दूसरा हिस्सा 60 दिन बाद, और तीसरा हिस्सा 120 दिन बाद डालें।

निराई-गुड़ाई:

  • निराई-गुड़ाई: अदरक की फसल में 2-3 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निराई बुवाई के 30-40 दिनों बाद करें और दूसरी निराई 60-70 दिनों बाद करें। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग (पुआल या सूखी घास से ढकना) का उपयोग करें।

रोग और कीट प्रबंधन:

  • रोग: अदरक में मुख्य रूप से राइजोम रोट (जड़ सड़न) और पत्तियों का पीला पड़ना जैसे रोग होते हैं। इनसे बचाव के लिए कवकनाशी का छिड़काव करें और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था रखें।
  • कीट: एफिड्स, नेमाटोड्स, और फॉल आर्मीवर्म अदरक की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनसे बचाव के लिए जैविक या रासायनिक कीटनाशक का सही तरीके से उपयोग करें।

कटाई:

  • कटाई का समय: अदरक की फसल बुवाई के 8-9 महीनों बाद तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली होने लगें और सूखने लगें, तब कटाई की जा सकती है।
  • कटाई की विधि: अदरक की कटाई हाथों से या हल्की कुदाल की सहायता से की जाती है। राइजोम को जमीन से सावधानीपूर्वक निकालें और साफ पानी से धो लें।

उपज:

  • उपज: अदरक की औसत उपज 150-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है। अच्छी देखभाल, सिंचाई, और उर्वरक प्रबंधन के साथ उपज में वृद्धि हो सकती है।

भंडारण:

  • कटाई के बाद अदरक को छायादार स्थान पर सुखाएं और उसे स्टोर करें। अदरक को लंबे समय तक ताजा रखने के लिए ठंडी और सूखी जगह में संग्रहित करें। इसे पाउडर, तेल, और अन्य उत्पादों के रूप में प्रोसेस भी किया जा सकता है।

बाजार में बिक्री:

  • अदरक को ताजे रूप में, सूखे अदरक, या अदरक के तेल के रूप में बेचा जा सकता है। बाजार में अदरक की मांग साल भर रहती है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है।

अदरक की खेती में सही समय पर बुवाई, उचित सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन, और रोग/कीट नियंत्रण से बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है। अदरक की फसल किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय साबित हो सकती है, क्योंकि यह एक प्रमुख मसाला फसल है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है।

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