चुकंदर की खेती (Beetroot Cultivation) कब और कैसे की जाती है – विस्तृत जानकारी
परिचय:
चुकंदर (Beetroot) एक महत्वपूर्ण जड़ वाली सब्जी है, जो अपने पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण बहुत लोकप्रिय है। इसमें आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन C, और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं। चुकंदर का उपयोग सलाद, जूस, और विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। इसके अलावा, इसे रंग और औषधीय प्रयोजनों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
जलवायु और मिट्टी:
- जलवायु: चुकंदर ठंडे मौसम में सबसे अच्छी तरह से उगता है। इसका आदर्श तापमान 15°C से 25°C के बीच होता है। 30°C से अधिक तापमान पर इसकी वृद्धि रुक जाती है।
- मिट्टी: चुकंदर की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट या अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी में जैविक पदार्थ की अच्छी मात्रा होने से फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार होता है।
बुवाई का समय:
- रबी मौसम: उत्तर भारत में चुकंदर की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच होता है।
- ग्रीष्मकालीन बुवाई: कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में, इसे फरवरी से मार्च के बीच भी उगाया जा सकता है।
बीज और बुवाई:
- बीज की मात्रा: चुकंदर के लिए 4-5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
- बीज की दूरी: बीजों को 30 सेमी की पंक्ति-दूरी और 10 सेमी की पौधे-दूरी पर बोया जाता है। बीजों को 2-3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।
- बुवाई की विधि: लाइन बुवाई विधि सबसे अधिक उपयोगी होती है, क्योंकि इससे निराई-गुड़ाई और सिंचाई में आसानी होती है। बुवाई से पहले बीजों को 12 घंटे के लिए पानी में भिगोना चाहिए, जिससे अंकुरण में तेजी आती है।
सिंचाई:
- पहली सिंचाई: बुवाई के तुरंत बाद करें।
- दूसरी सिंचाई: 7-10 दिनों के अंतराल पर करें। चुकंदर की फसल को नियमित रूप से पानी की आवश्यकता होती है, विशेषकर जब जड़ें बन रही हों।
- फूल आने के समय: फूल आने के समय से लेकर जड़ बनने तक मिट्टी में नमी बनाए रखना जरूरी है।
उर्वरक:
- जैविक खाद: बुवाई से पहले खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें।
- रासायनिक उर्वरक: 60-80 किग्रा नाइट्रोजन, 40-50 किग्रा फॉस्फोरस, और 40-50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी आधी मात्रा पहली सिंचाई के समय दें।
निराई-गुड़ाई:
- चुकंदर की फसल में 2-3 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निराई बुवाई के 20-25 दिनों बाद करें, ताकि खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सके।
रोग और कीट प्रबंधन:
- रोग: चुकंदर में प्रमुख रूप से पत्तियों का झुलसा, पाउडरी मिल्ड्यू, और रूट रॉट जैसे रोग हो सकते हैं। इनसे बचाव के लिए उचित फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
- कीट: एफिड्स, लीफ माइनर, और कटवर्म जैसे कीट चुकंदर की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जैविक या रासायनिक कीटनाशक का सही उपयोग करें।
कटाई:
- चुकंदर की फसल बुवाई के 90-120 दिनों बाद तैयार हो जाती है। जड़ें पूर्ण विकसित और मध्यम आकार की होनी चाहिए। जड़ों को हाथ से खींचकर या हल्की खुदाई करके निकालें।
उपज:
- जड़ों की उपज: चुकंदर की औसत उपज 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है। अच्छी देखभाल और प्रबंधन के साथ उपज में वृद्धि हो सकती है।
- पत्तियों की उपज: पत्तियों की कटाई भी की जा सकती है, जिन्हें सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।
बाजार में बिक्री:
- चुकंदर की कटाई के बाद इसे तुरंत बाजार में ले जाना चाहिए, क्योंकि ताजगी बनाए रखने के लिए इसे ठंडे स्थान पर रखना चाहिए।
- अच्छी गुणवत्ता की जड़ें और पत्तियाँ बाज़ार में अधिक कीमत पर बिकती हैं।
चुकंदर की खेती में सही समय पर बुवाई, उचित सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन, और रोग/कीट नियंत्रण से बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है। यह फसल किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।